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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

साँई सार

SAI BABA

साँई सार

● जिस तरह कीड़ा कपड़ो को कुतर डालता है, उसी तरह ईर्ष्या मनुष्य को।

  ● क्रोध मूर्खता से शुरू होता हैं और पश्चाताप पर खत्म होता हैं।

  ● नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं।

  ● सम्पन्नता मित्रता बढ़ाती हैं, विपदा उनकी परख करती हैं।

  ● एक बार निकले बोल वापस नहीं आ सकते, इसलिए सोच कर बोलो।

  ● तलवार की चोट उतनी तेज नहीं होती, जितनी जिव्हया की।

  ● धीरज के सामने भयंकर संकट भी धुँए के बादलों की तरह उड़ जाते हैं।

  ● तीन सच्चे मित्र हैं - बूढ़ी पत्नी, पुराना कुत्ता और पास का धन।

  ● मनुष्य के तीन सदगुण हैं - आशा, विश्वाश और दान।

  ● घर में मेल होना पृथ्वी पर स्वर्ग के समान हैं।

  ● मनुष्य की महत्ता उसके कपड़ों से नही वरन उसके आचरण से जानी जाती हैं।

  ● दूसरों के हित के लिए अपने सुख का भी त्याग करना सच्ची सेवा हैं।

  ● भूत से प्रेरणा लेकर वर्तमान में भविष्य का चिन्तन करना चाहिए।

  ● जब तुम किसी की सेवा करो तब उसकी त्रुटियों को देखकर उससे धृणा नहीं करनी चाहिए।

  ● मनुष्य के रूप में परमात्मा सदा हमारे सामने हैं, उनकी सेवा करो।

  ● अन्धा वह नहीं जिसकी आँखें नहीं, अन्धा वह हैं जो अपने दोषों को ढकता हैं।

  ● चिंता से रूप, बल और ज्ञान का नाश होता हैं।

  ● दूसरे को गिराने की कोशिश में तुम स्वंय गिर जाओगे।

  ● प्रेम मनुष्य को अपनी और खींचने वाला चुम्बक हैं।


ॐ साई राम




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