एक गाँव में एक सुखी परिवार रहता था। उस परिवार में तीन भाई और एक बहन थीं।
उनके माँ बाप उन चारों सें बेहद प्यार करतें थें। मगर बीच वाले बेटे से थोड़ा परेशान थें। क्योंकि बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डॉक्टर बन गया और छोटा बेटा भी पढ़ लिखकर इंजीनियर बन गया था।
मगर उनका बीच वाला बेटा बिल्कुल गवार और आवारा ही बनकर रह गया। अब उनके दो बेटे डॉक्टर और इंजीनियर नें शादी भी कर ली थीं।
और कुछ महीनों के बाद ही उनकी बेटी की भी एक अच्छे घराने में शादी हो गई थीं। मगर बीच वाला बेटा अभी भी कुँवारा ही था। क्योंकि वो बिल्कुल अनपढ़ था और कहीं पर मजदूरी का छोटा सा काम करता था।
इसलिए उसे शादी के लिए कोई भी लड़की नहीं मिल रही थीं। और उसके माँ बाप उससे बहुत परेशान हो चुके थें। अब जब भी उसकी बहन अपने मायके आती तो पहले वो अपने डॉक्टर और इंजीनियर भाइयों से मिलती थीं।
मगर बीच वाले भाई से वो बहुत कम मिलती थीं। क्योंकि वो उसे ज्यादा पैसे नहीं दे पाता था। लेकिन फिर भी वो अपनी बहन से बहुत प्यार करता था। अब उनके पिताजी की बीच वाले बेटे की शादी किये बिना ही मृत्यु हो गयी।
उनकी माँ ने सोचा कहीं अब किसी के मुँह से बटवारे की बात न निकले इसलिए अपनें ही गाँव की एक सीधी साधी लड़की से अपनें गवार लड़के की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ।
अब उसका अनपढ़ बेटा पूरा मन लगाकर काम करने लगा। और पहले से कहीं ज्यादा महेनत भी करनें लगा। अब तो उसे कोई भी दोस्त बुलाने आता तो वो उसे यही कहता था। कि भाई पहले तो मैं जैसे तैसे अकेला कमाकर खा लेता था।
मगर अब मेरी शादी हो गई तो मुझे अपनी पत्नी के लिए भी कमाना पड़ता हैं। और कल को आनेवाले बच्चों के लिए भी तो कुछ जोड़ना ही पड़ेगा। इसलिए दोस्त अब मैं तेरे साथ नहीं घूम सकता। ये कहकर उसका गवार लड़का सीधा अपनें काम पर निकल जाता हैं।
अब उसके दोनों भाई डॉक्टर और इंजीनियर आपस में ये बात करतें हैं। कि हम दोनों तो उस गवार से कहीं ज्यादा पैसे कमातें हैं। इसलिए हम सब घर और जमीन का बटवारा कर लेते हैं।
और उस गवार से अलग हो जातें हैं। क्योंकि अब वो हमारे बराबर कभी भी नहीं कमा सकता। इसलिए उन दोनों भाइयों ने अपनी माँ के लाख मना करने के बावजूद भी बटवारे की तारीख तय कर दी।
और उन्होंने अपनी बहन को भी बुलवा लिया। और अपनें गवार भाई से भी कह दिया कि आज तुम अपनें काम पर मत जाना क्योंकि हम सब आज घर और ज़मीन का बटवारा करेंगे।
उसी वक़्त उसकी बहन भी आ जाती हैं। तभी उसका गवार भाई कहता हैं। कि तुम लोग बटवारा कर लो मुझे जो भी देना हो दे देना मैं शाम को आकर अंगूठा लगा दूंगा तभी उसकी बहन कहती हैं।
अरे बेवकूफ तू तो अनपढ़ ही रहेगा। जमीन का हिस्सा तो आमने सामने बैठकर ही होता हैं। तभी उसके दोनों भाई भी बीच वाले गवार भाई को उल्टा सीधा कहते हैं। तब उसकी माँ भी उसे कहती है कि बेटा आज तू काम पर मत जा बटवारा तेरे सामने ही होगा तो ही अच्छा हैं।
उसी वक़्त वकील भी आ जाता हैं। तभी वकील कहता है कि आपका सारा हिस्सा मिलाकर 20 बीघा जमीन हैं और आपका घर हैं। अब ये बताओं कि किसको कितना हिस्सा देना हैं। मैं उसी हिसाब से बटवारे के कागज़ बना दूंगा।
उसी वक़्त उनका गवार भाई कहता हैं। कि वकील साहब 10-10 बीघा मेरे दोनों भाइयों के नाम लिख दो और ये जो हमारा मकान हैं। ये मेरी प्यारी बहन के नाम कर दो।
तभी उसके दोनों भाई और बहन पूछते हैं। कि और तू हिस्से में क्या लेगा। तभी उनका गवार भाई कहता हैं कि मेरे हिस्से में मेरी प्यारी माँ हैं न। और तभी वो अपनी पत्नी की तरफ मुस्कुराते हुए कहता हैं। कि क्यों मेरी प्यारी पत्नी क्या मैनें गलत कहा क्या?
उस गवार की पत्नी अपनी सास से लिपटकर कहती हैं। कि माँ से बड़ी वसीयत क्या होगी। मेरे लिए। उसी वक़्त उसका गवार पति भी अपनी माँ से लिपट जाता हैं। गवार बेटे बहुँ के इसी प्यार ने जमीन जायदाद के बटवारे को एक सन्नाटे में बदल दिया।
तभी बहन अपनें गवार भाई के गले लगकर रोते हुए कहती हैं। कि माफ़ कर दो भईया मैं आपको समझ नहीं सकी। तभी उसका भाई कहता हैं कि मेरी प्यारी बहन इस में इस घर में जितना अधिकार हमारा हैं उतना ही अधिकार तेरा भी हैं।
और रही बात बटवारे की तो बटवारा नहीं करने से हमारा जीवन रुक तो नहीं जाएगा। क्यों करते हैं हम बटवारा क्या हम एक साथ मिलकर नहीं रह सकतें। जैसे हम बचपन में मिलकर रहते थें।
एक साथ मिलकर रहनें को ही तो कहतें हैं एक अच्छा परिवार और उस अच्छे परिवार को संभालती है एक "माँ" तभी उसके दोनों भाई भी बहुत शर्मिंदा होते हैं। और वो बटवारे के सभी कागज़ फाड़कर फेंक देते हैं।
और उस दिन के बाद से ही उनका पूरा परिवार खुशी खुशी एक साथ ही रहने लगा।
तो दोस्तों ये थीं "परिवार और माँ" एक सच्ची कहानी।
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