पिता ने तोड़ दिया धागा
लेकिन जब हमने धागा तोड़ दिया तो फिर पतंग नीचे क्यों आकर गिर गई। ऐसा क्यों हुआ यह नीचे क्यों आ गई। इस बात पर उसके पिता ने उसे कहा जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं वहां हमें अक्सर लगता है की कुछ चीजें जिनसे हम बंधे हुए हैं वह हमें जिंदगी की ऊंचाइयों को छूने से रोक रही है। जैसे कि, माता-पिता, अनुशासन या परिवार। इसलिए हमारे मन में ऐसे विचार आते हैं कि हमें उनसे आजाद होना चाहिए। ताकि हम जिंदगी के ऊंचाई को और छु सके। लेकिन जिस प्रकार पतंग धागे से बंधी हुई हैं ठीक उसी प्रकार हम भी इन से बंधे हुए हैं। वास्तव में यही वह धागा होता है जो हमें उस ऊंचाई पर बनाए रखता है।
अगर तुम इस धागे को तोड़ दोगे तो तुम एक बार तो उस पतंग की तरह ऊंचाई पर तो जाओगे लेकिन बाद में उसी पतंग की तरह जमीन पर गिर जाओगे। जब तक वो पतंग घागे से बंधी रहेगी। तब तक वह आसमान की ऊंचाइयों को छूती रहेगी। अगर तुम जिन्दगी में ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो। तो इन धागो से रिश्ता मत तोड़ना। क्योंकि जीवन में सफलता पूरे परिवार के संतुलन से ही मिलती है। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है, कि हमारे माँ बाप हमे आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। पर ऐसा बिल्कुल भी नही हैं। हमारे माँ बाप हमे आगे बढ़ने से नहीं रोक रहे हैं। वे तो रोक टोक करके उस धागे को टूटने से बचाना चाहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि अगर यह धागा टूट गया तो तुम जिंदगी में ऊंचाइयों को कभी भी छू नहीं पाओगे। "माँ" एक ऐसी बैंक है जहां आप हर भावना और दुख जमा कर सकते हो। और "पिता" एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिसके पास बैलेंस ना होते हुए भी हमारे हर सपने को पूरे करने की कोशिश करता है।
"परिवार" से बड़ा कोई "धन" नहीं। "पिता" से बड़ा कोई "सलाहकार" नहीं। माँ की ममता से बड़ी कोई छांव नहीं। "भाई" से अच्छा कोई "भागीदार" नहीं। और "बहन" से बड़ा कोई "शुभचिंतक" नहीं। "परिवार" के बिना "जीवन" जीवन नहीं होता। दोस्तो जिंदगी में सभी आगे बढ़ना चाहते हैं। इसलिए अपने सपनों से उतना प्यार कीजिए। जितना आप अपने परिवार और माता-पिता से करते है।
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