Dhanteras 2020 - धनतेरस का शुभ मुहूर्त - SB Entertainment Blogs

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

Dhanteras 2020 - धनतेरस का शुभ मुहूर्त


INTRODUCTION

                   धनतेरस शब्द का मतलब क्या हैं ?
  
धनतेरस क्यों मनाया जाता हैं ?

धनतेरस का शुभ मुहूर्त क्या हैैं ?

धनतेरस पर खरीदारी के मुहूर्त क्या हैं ?

धनतेरस के दिन क्या क्या खरीदे ?

क्या हैं वो 4 चीजें जो धनतेरस के दिन ना खरीदे ?

धनतेरस के दिन किन किन देवी-देवता की पूजा करें ?

धनतेरस के लिए पूजा की सामग्री क्या हैं ?

धनतेरस की पूजा कैसे करे ?
  
धनतेरस की पौराणिक कथा


धनतेरस
धनतेरस शब्द का मतलब क्या हैं ?

हिंदू कैलेंडर के मुताबित धनतेरस कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता हैं। इसके ठीक दो दिन बाद दीपावली मनाई जाती हैं। 'धन' का मतलब समृद्धि और 'तेरस' का मतलब तेरहवाँ दिन होता हैं।

"धनतेरस यानी अपने धन को तेरह गुणा बनाने और उसमें वृद्धि करने का दिन"


धनतेरस क्यों मनाया जाता हैं ?

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन को धनतेरस या धन‌त्रयोदशी के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था जो की समुद्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे।

उनके हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश था।
वे साक्षात विष्णु भगवान के अंशांश अवतार थे।
वे ही आयुर्वेद के प्रवर्तक(जनक) और यज्ञ भोक्ता धन्वंतरि नाम से सुप्रसिद्ध हुए।

श्री कृष्ण ने कहा _ भगवान धन्वंतरि स्वयं महान पुरुष हैं और साक्षात नारायण के अंश स्वरूप हैं। पूर्वकाल में जब समुद्र का मंथन हो रहा था, उस समय महासागर से उनका प्रादुभाव हुआ।

भगवान धन्वंतरि को ओषधी का जनक भी कहा जाता हैं। धनतेरस के दिन सोने चांदी के बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता हैं। इस दिन धातु खरीदना भी बेहद शुभ माना जागा हैं।

धनतेरस का शुभ मुहूर्त

13 नवंबर 2020 को 05:45 से 8:24 तक

धनतेरस पर खरीदारी के मुहूर्त

सुबह : 08:10 से 10:35 तक
सुबह : 11:42 से दोपहर 12:20 तक
दोपहर : 12:10 से 01:20 तक
शाम : 04:17 से 05:35 तक
रात : 09:00 से 10:25 तक

धनतेरस के दिन क्या क्या खरीदे ?

(1) पानी भरने वाला बर्तन या कलश

मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन दौरान हाथ में कलश लेकर जल में थे। इसलिए इस दिन पानी भरने वाला बर्तन या कलश खरीदना शुभ होता हैं।

(2) बर्तन ( चांदी, पीतल, धातु )

साथ ही इस दिन धातु के बर्तन खरीदना बहोत शुभ रहता हैं। विशेषकर चांदी और पीतल को भगवान धन्वंतरि का मुख्य धातु माना जाता हैं। अगर आप कांसी के बर्तन भी खरीद ते हैं तो भी शुभ रहता हैं। और ऐसे में इस दिन चांदी या पीतल के बर्तन जरूर खरीदना चाहिए।

(3) धनिया

मा लक्ष्मी को धनिया अतिप्रिय हैं। इसलिए धनिया के बीज जरूर खरीदना चाहिए और बांटने चाहिए। मान्यता हैं कि जिस घर में धनिया के बीज रहते हैं वहा कभी धन की कमी नहीं रहती। आप इसे गमले में भी लगा सकते हैं।

(जैसे नवरात्रि के समय हम जव उगाते हैं, वैसे ही आपको धनतेरस पर धनिया उगाना चाहिए।)

दीपावली के बाद धनिया को या धनिया के बीज को माता को अर्पित करने के बाद घर के आंगन में लगाना भी शुभ रहता हैं।

(4) झाडू

इस दिन नया झाडू खरीदना शुभ रहता हैं। अब मान लीजिए आप किसी ऐसे देश में रहते हैं जहां पर मशीनें हैं, कई सालो से हैं। जो कि डस्टिंग का काम करती हैं। तो आप साफ सफाई की कोई भी मशीन या झाडू खरीदना उस दिन शुभ रहता हैं। मान्यता हैं कि झाडू गरीबी दूर करते हैं, क्योंकि की माँ लक्ष्मी स्वच्छ घर में ही निवास करती हैं। और झाडू तो आपको पता ही हैं, कि साफ सफाई और साजसजा के लिए सर्वोत्तम साधन हैं। इस दिन झाडू खरीदने से घर में मौजुद नकारात्म ऊर्जा घर से बाहर चली जाती हैं। और जब घर से बाहर कोई चीज जाएगी तो अंदर भी तो आयेगी, वो सकारात्मत ऊर्जा हैं, जो आपके घर में आयेगी।

(5) बहीखाता

दुकानदारों को ऑफ़िस या फैक्टरी वालो को नया रजिस्टर्ड, बहीखाता, कंप्युटर, इस प्रकार की चीजें जो आपकी फाइनांस और मैनेजमेंट में काम आती हैं उसको खरीदना बहोत शुभ माना जाता हैं। 

दुकानदार नई तिजोरी और बहीखाता को दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करने के बाद प्रयोग करे ध्यान रहे के तिजोरी एल्युमिनियम की ना हो।

(6) सोना चांदी के आभूषण

(7) कपडे

(8) वेहिकल्स

4 चीजें जो धनतेरस के दिन ना खरीदे

(1) कांच की चीजे

कांच, या फिर कांच की बनी हुई चीजें नहीं खरीदनी चाहिए। चाहे कितना भी शोपीस अच्छा हो कांच का, इसम संबंध राहु से हैं और राहु नीच ग्रह हैं इसलिए धनतेरस के दिन ग्रह नक्षत्र को सही रखने के लिए कांच संबंधित चीजें नहीं खरीदनी चाहिए।

(2) काले रंग की चीजें

इस दिन कोई भी काली रंग की चीजे नहीं खरीदनी चाहिए। क्योंकि काला रंग दुर्भाग्य का भी प्रतीक माना जाता हैं।

(3) तेल, घी जैसी तैलीय चीजें

तेल, घी जैसे तेलीय चीजें इस दिन नहीं खरीदना चाहिए।

(4) लोहा

भूलकर भी लोहे कि बनी हुई चीजें ना खरीदे इस दिन लोहा खरीदना बहुत ही अशुभ माना जाता हैं। तो ध्यान रखिए कि चाकू, केचि, दूसरे धारदार हत्यार को इस दिन नहीं प्राप्त करे। इससे आपके जीवन पर नकारात्म और ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि आपके घर में हमेशा अशांत बनाकर रखेगा।

धनतेरस के दिन किन किन देवी-देवता की पूजा करें ?
 
इस दिन हम पूजा करते हैं भगवान कुबेर की, धन की देवता की, धन्वंतरि जी की पूजा करते हैं और माँ लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं।

धनतेरस के लिए पूजा की सामग्री

लक्ष्मी-गणेश के चांदी के सिक्के

पूजा की सुपारी 5

प्रसाद के लिए मिष्ठान

पान के पत्ते (फटे_फटे न हो)

लोंग, कपूर, रोली और अक्षत

फूल माला

गंगा जल

फलो में शरीफा सबसे उत्तम रहता हैं।
(शरीफा ना मिले तो हरा मीठा फल लीजिए)

कुछ पैसों के सिक्के

धूप दीप(मिट्टी का)
(4 मिट्टी के दीपक और एक बड़ा दीपक यानी 5 दीपक)

एक बर्तन जो आपने खरीदा हो(सोना,चांदी,तांबा कोई भी एक)

लाल कपड़ा

सरसो तेल

रूई बत्ती

धनतेरस की पूजा कैसे करे?

(1) लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।

(2) लक्ष्मी गणेश के सिक्के, कुबेर की मूर्ति पटरी पर स्थापित करें।

(3) ॐ श्री गणेशाय नमः मंत्र का उच्चारण कर दीपक व धूप जलाए।

(4) ॐ श्री गणेशाय नमः मंत्र बोलकर लक्ष्मी गणेश, कुबेर जी पर तिलक लगाए, 5 सुपारी, पान के पत्ते, लौंग, चावल, फल फूल, अर्पित करे।

( हाथ जोड़ कर प्रार्थना करे)

(5) ॐ हिरीम कुबेराय नमः मंत्र बोलकर कुबेर जी को फल अर्पित करे,
 
खरीदें हुए बर्तन पर भी तिलक लगाए।

(6) हाथ जोड़कर कुबेर जी से अपनी संपन्नता के लिए प्राथना करे।

(7) चार मिट्टी के दीपक में सरसो का तेल भरकर उनमें रूई बत्ती लगा दे। ( 2 दीपक दाए और 2 दीपक बाएं लगाए)

(8) मुख्य गेट के सामने इन दीपको को जला दे फिर

ॐ यमाय नमः मंत्र 7 बार बोले

अगले दिन चांदी का सिक्का हैं वो तिजोरी में रखना हैं।
बर्तन को रसोई में रख दे।

धनतेरस की पौराणिक कथा
इस दिन को मनाने के पीछे धन्वंतरि के जन्म लेने की कथा के अलावा, दूसरी कहानी भी प्रचलित हैं। कहा जाता हैं कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मै जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गई और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गई।

कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊ तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की और जा रहा हूं,  तुम उधर मत आना। विष्णु जी के जाने पर लक्ष्मी जी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया हैं और भगवान स्वयं चले गए।

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे पीछे चल पड़ी। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक  खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गई और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ी। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगे।

उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी।अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 साल तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगी।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी के पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया।

पूजा के प्रभाव ओर लक्ष्मी कि कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 साल बड़े आंनद से कट गए। फिर 12 साल के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुई।

विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि उन्हें कोन जाने देता हैं, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरती। इनको बडे़ बडे़ नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप इसलिए 12 साल से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 साल सेवा का समय पूरा हो चुका हैं। किसान ह्थपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

तब लक्ष्मी जी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस हैं। तुम कल घर लिप कर स्वच्छ करना रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और संध्याकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किन्तु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।

इस एक दिन की पूजा से साल भर मै तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गई। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन धान्य से पूर्ण हो गया। 

           इसी वजह से हर साल तेरस के दिन 
              लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।
    

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